अर्श की बुलंदियों से

अर्श की बुलंदियों से 
है बुलंद प्यार तेरा 
मैं हूँ नाचीज एक बन्दा ,
तू है परवरदिगार मेरा 

मैंने हर राह सवारी लेकिन रूप तेरा 
भर न पाया 
की मोहब्बत इस जहाँ से ,
प्यार तुझ से कर न पाया 
जब जहाँ ने साथ छोड़ा ,
तब बना तू मेरा सहारा 
अर्श ही ...

तन्हा-तन्हा मैं चल रहा था ,

अपने पापों में जल रहा था 
ऐसा गहरा था अँधेरा ,
सायें ने भी साथ छोड़ा 
बढ़ के दामन जो तूने थामा ,
चमका जीवन का सवेरा 
अर्श की ...

मेरा जीवन वो चमन था ,

रूठी थी बहार जिससे 
गुलशन को सँवारा मेरे ,
तूने अपना खून बहाके
इतना गहरा है प्यार तेरा ,
मुझको तूने गले लगाया 
अर्श की ...

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